परशुराम जयंती 2024 : इस वर्ष 10 में 2024 को भगवान परशुराम जयंती मनाई जा रही है जाने, परशुराम जयंती की विशेष जानकारी

परशुराम जयंती 2024 : परशुराम जयंती हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है भगवान परशुराम श्री विष्णु जी के छठे अवतार हैं, अतः इस दिन परशुराम व विष्णु जी की पूजा करना अन्यंत शुभ फलदायक सिद्ध होता है

परशुराम जयंती 2024 वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है

परशुराम जयन्ती १० मई २०२४, शुक्रवार को वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि पर मनाई जाएगी।

परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है?

परशुराम जयंती को भगवान परशुराम का प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान परशुराम श्री विष्णु के छठे अवतार थे। श्री हरि ने अपना यह अवतार पृथ्वी के पापी राजाओं का विनाश करने के लिए लिया था। इस प्रकार, भगवान विष्णु के अवतार की उपासना करने के लिए परशुराम जयंती मनाई जाती है। आपको बता दें कि भगवान परशुराम को राम जमदग्य, राम भार्गव और वीरराम के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान परशुराम श्री विष्णु के मानव अवतार हैं, जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों में से एक थे, इसलिए वो आज तक जीवित है। उनका नाम परशुराम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद सभी क्षत्रियों को मारने के लिए एक परशु नामक अस्त्र अर्थात् फरसे का प्रयोग किया था। भगवान परशुराम शंकर जी के अनन्य भक्त थे, अतः भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें फरसा भेंट किया था।

भगवान परशुराम श्री हरि के एकमात्र ऐसे अवतार हैं, जो राम व कृष्ण दोनों के साथ सह-अस्तित्व में थे, क्योंकि महाभारत व रामायण दोनों में ही भगवान परशुराम के अवतार का उल्लेख मिलता है।

शास्त्रों के अनुसार परशुराम का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। परशु का मतलब है कुल्हाड़ी और राम, अर्थात कुल्हाड़ी के साथ राम। जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार है, वैसे ही परशुराम भी भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हीं की तरह ही शक्तिशाली भी हैं। परशुराम को अनेक नामों जैसे रामभद्र, भृगुपति, भृगुवंशी आदि से जाना जाता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने ब्राह्मणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए जन्म लिया था। कहते हैं कि परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं होती है उन लोगों के लिए ये व्रत फलदायी होता है। साथ ही भक्तों को भगवान परशुराम के साथ विष्णु जी का आशीर्वाद भी मिलता है।

परशुराम जयंती का महत्व

परशुराम शब्द का अर्थ है, फरसा धारण करने वाला। हिंदु धर्म में उनकी जयंती का ये दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के इस अवतार की उपासना से हमारे जीवन में व्याप्त समस्त बुराइयों का नाश होता है।

ये दिन किसे नए कार्य का आरंभ करने व शुरू करने और ब्राह्मणों को भोजन तथा दान आदि देने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि परशुराम जयंती पर जो लोग पूजा-पाठ, दान-पुण्य जैसे अच्छे कर्म करते हैं, उन्हें भगवान परशुराम का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

परशुराम जयंती कैसे मनाई जाती है?

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि परशुराम जी अभी भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। दक्षिण भारत में, उडुपी के समीप पवित्र स्थान पजाका में भगवान परशुराम का एक प्रमुख मंदिर स्थित है, जहां जाकर श्रद्धालु उनके दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा भारत के पश्चिमी तट पर परशुराम जी को समर्पित कई ऐसे मंदिर है, जहां जाकर भक्त उनकी आराधना कर सकते हैं,

और आशीर्वाद ले सकते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। परंतु जिन लोगों के लिए गंगा स्नान करना व भगवान परशुराम के मंदिर जाना संभव न हो, वो पानी में गंगाजल मिला कर स्नान कर सकते हैं और किसी विष्णु मंदिर में जाकर भगवान परशुराम का सुमिरन कर सकते हैं।

परशुराम ने अपनी माता का वध क्यों किया ?

मान्यता के अनुसार ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके फलस्वरूप उनके घर भगवान परशुराम का जन्म हुआ। कहते हैं कि भगवान परशुराम धैर्यवान, साहसी, आक्रामक, क्रोधी व अत्यंत आज्ञाकारी स्वभाव के थे।

पुराणों में वर्णन मिलता है कि ऋषि जमदग्नि की पत्नी अर्थात् परशुराम की माता रेणुका अत्यंत पतिव्रता स्त्री थीं। किंतु एक बार जब वह नदी पर जल लेने के लिए गईं थीं, तभी उन्होंने एक गंधर्व को देखा और उसके प्रति सम्मोहित हो उठीं। ऋषि जमदग्नि को अपनी योग के द्वारा शीघ्र ही इस बात का पता चल गया, जिसके पश्चात् वे अपनी पत्नी पर क्रोधित हो गए।

उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे अपनी माँ का वध कर दें, परंतु सभी पुत्रों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप वे सभी पाषाण में परिवर्तित हो गए। किंतु परशुराम अत्यंत आज्ञाकारी थे, अतः उन्होंने पिता द्वारा दिए गए आदेश का पालन किया और अपनी मां का सिर काट दिया। इस पर ऋषि जमदग्नि ने परशुराम से कोई दो वरदान मांगने के लिए कहा। ये सुनकर परशुराम ने अपने पिता से अनुरोध किया वो उनकी माता रेणुका और भाइयों को पुनः जीवित करें।

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